प्रारम्भिक जीवन (1863-1888)
स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त एक प्रसिद्ध वकील थे और माता भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थीं। बचपन में नरेंद्रनाथ एक बुद्धिमान और जिज्ञासु बालक थे। वे अक्सर ध्यान में बैठते थे और उनके अंदर ईश्वर को जानने की प्रबल इच्छा थी।
शिक्षा
नरेंद्रनाथ की शिक्षा कलकत्ता के मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूशन और प्रेसिडेंसी कॉलेज में हुई। वे एक मेधावी छात्र थे और उन्होंने पश्चिमी दर्शन, इतिहास और साहित्य में गहरी रुचि ली। हालांकि, उनकी जिज्ञासा केवल शैक्षिक ज्ञान तक सीमित नहीं थी; वे आध्यात्मिकता और धर्म के गूढ़ रहस्यों को जानने के लिए भी उत्सुक थे।
रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात
नरेंद्रनाथ की आध्यात्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब वे दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में रामकृष्ण परमहंस से मिले। रामकृष्ण ने नरेंद्रनाथ के प्रश्नों का गहराई से उत्तर दिया और उन्हें ईश्वर की अनुभूति की दिशा में मार्गदर्शन किया। रामकृष्ण के सान्निध्य में ही नरेंद्रनाथ ने सांसारिक जीवन त्यागकर संन्यास लेने का निर्णय लिया और उनका नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा।

शिकागो धर्म महासभा और भाषण
स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भाग लिया। 11 सितंबर 1893 को उन्होंने “मेरे अमेरिकी बहनों और भाइयों” से अपनी ऐतिहासिक भाषण की शुरुआत की, जो आज भी विश्वभर में प्रसिद्ध है। इस भाषण ने उन्हें रातोंरात प्रसिद्धि दिलाई और भारतीय दर्शन और संस्कृति के प्रति पश्चिमी देशों का दृष्टिकोण बदल दिया।
यात्राएँ और कार्य
शिकागो धर्म महासभा के बाद स्वामी विवेकानंद ने कई देशों की यात्रा की और भारतीय दर्शन, योग और वेदांत का प्रचार किया। उन्होंने पश्चिमी दुनिया को भारतीय आध्यात्मिकता और योग के महत्व से परिचित कराया। भारत लौटने के बाद उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करना था।

योगदान और महत्व
स्वामी विवेकानंद के विचार और शिक्षा आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने भारतीय समाज को आत्म-सम्मान और आत्म-निर्भरता का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ मानवता, सेवा और भक्ति के मूल्य पर आधारित थीं। वे एक ऐसे भारत की कल्पना करते थे, जहाँ आध्यात्मिकता और प्रौद्योगिकी का समन्वय हो।
मृत्यु
स्वामी विवेकानंद का निधन 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ, पश्चिम बंगाल में हुआ। केवल 39 वर्ष की आयु में उन्होंने इस संसार को अलविदा कह दिया, लेकिन उनके विचार और शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं।
स्वामी विवेकानंद का जीवन एक प्रेरणा स्रोत है। उनके अद्वितीय योगदान और शिक्षाओं ने न केवल भारत को, बल्कि पूरे विश्व को मानवता, सेवा और आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। उनके जीवन से हम सीख सकते हैं कि दृढ़ संकल्प और सच्ची सेवा की भावना से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।